31 मई, 2011

लोकशाही की विजय बाकी है!

एक बार फिर सरकार से ठनने वाली है! जंतर-मंतर पर एक बार फिर बैठना भी पड़ेगा ये तय है! जनलोकपाल समिति की कल की बैठक के बाद जो सामने आया वो अकल्पनीय नहीं है! आशंका पहले से थी! सरकारी नुमाइंदे वही कर रहे है जो उन्हें करना था! बेशार्मों को शर्म तो आती नहीं! घोटाले पे घोटाले किए जा रहे हैं और सीनाज़ोरी भी किए जा रहे हैं! अब तो उन्होंने जनलोकपाल विधेयक के हिमायतियों की मुहिम की हवा निकालने के लिए नया दलाल भी तैयार कर लिया है! रामदेव वही तो कर रहा है! रामदेव को और कुछ नहीं चाहिए! रामदेव की एक ही मंशा है, उसके साम्राज्य को कोई ना छेड़े! रामदेव एक बिज़्नेसमॅन है! घाघ बिज़्नेसमॅन! गेरुए वस्त्रा, लंबी दाढ़ी और योग के पीछे एक शातिर कारोबारी! उसके शिविर मे जाने की फीस सुनेंगे तो दिमाग़ खराब हो जाएगा! एक साम्राज्य स्थापित कर लिया है और अब अपनी राजनीति चमकने मे लगा है! दिग्विजय और रामदेव की नूरा कुश्ती सबके सामने है! दोनों ने मिलकर जो कुछ किया उसका बस एक ही उद्देश्य है, मुद्दे को इतना तूल दे दो, ऐसी-ऐसी बे सिर-पैर की बातों में उलझाओं की उसकी गंभीरता ही ख़तम हो जाए!
भ्रष्टाचार का विष राजनीति और समाज में इस कदर गहरे उतर चुका है की एक व्यापक और सिस्टेमिक इलाज़ की ज़रूरत है! और इसके लिए हर किसी की ज़िम्मेदारी का तय होना ज़रूरी है!
क्या करे हम एक ईमानदार प्राधानमंत्री का जिसके पास इतनी इक्षाशक्ति नहीं की ग़लत को ग़लत कह सके! उनकी नाक के नीचे 2जी घोटाला होता है, राष्ट्रमंडल खेल घोटाला होता है, आदर्श के नाम पर कैसा आदर्श पेश होता है ये जगजाहिर है! बिपक्ष मे वो नैतिक बल ही नहीं रह गया है की वो ग़लतियों पर उंगली रख सके!
राजनीतिक नेतृत्व मे कोई नहीं हैं जो डॉवा कर सके की उसकी कमीज़ अब भी सफेद है! किस पर गबन या पद के दुरुपयोग का इल्ज़ाम नहीं है! लालू-मुलायम-माया-सुषमा-येदीयूर्रप्पा-नरेंद्र मोदी-कॉंग्रेस-भाजपा-राजद-सपा-बसपा-दिनाकरण-सौमित्रा सेन-पीजे थॉमस-कलमाडी-भनोट-राजा-कनिमोझी-मोरानी-बालवा-चंद्रा-गोयनका-हसन अली-अशोक चव्हान-देशमुख और ना जाने कौन कौन! हम्माम में सभी नंगे है! इन नंगों और तथाकथित ईमानदारों का गठजोड़ क्यों कर लोगों के सामने अपनी ज़िम्मेदारी स्वीकार करने लगा! क्यों कर जनता को अधिकार देने लगा! क्यों अपनी बनी-बनाई लंका को खुद आग लगाने लगा!
मीडीया बूम के इस दौर में सब-कुछ हाइजॅक हो सकता है अगर सावधानी ना बरती गई तो! सरकार से निर्णायक लड़ाई तो बाकी है ये पहले दिन से पता था! अब वक़्त आ गया है! राजनीतिक वर्ग और सरकार किसी कीमत पे अपने उपर लगाम लगाने को तैयार नहीं हो सकते! अन्ना और हमारी ज़िम्मेदारी अब और बढ जाती है! लंबी लड़ाई लड़नी पड़ेगी! लड़ाई को दूर-दराज तक पहुँचना होगा! केवल जंतर-मंतर पे बैठने भर से काम नहीं चलेगा! मुहिम चौतरफ़ा चलानी होगी! सामना उस तंत्र से है जिसमे काले अँग्रेज़ों ने लोकतंत्र पे कब्जा जमा लिया है! जनता के चुने हुए प्रतिनिधि होने का हवाला दे कर अब और लूट की इजाज़त हम नहीं दे सकते! हमें हमारा लोकतंत्र वापस लेना होगा, हर कीमत पर लेना होगा! आख़िर हम कब तक चुप बैठे रहेंगे!

10 अप्रैल, 2011

विजय-लोकशाही की विजय!

विजय-लोकशाही की विजय!
by शैशव कुमार on Friday, April 8, 2011 at 12:34pm

ये अंत की शुरुआत है! ये शुरुआत है सपने वापस देखने की. सपने देखने की, आशाए पालने की. ये आदत हमसे कहीं छूटती जा रही थी. अन्ना आपका धन्यवाद. आपने हमे हमारी ज़वानी, ज़वानी की उर्जा, हमारा ज़मीर सबकुछ वापस लौटा दिया. राजाओ, कलमाडीयो थॉमसो होसियार! अब तुम पर इस देश का युवा फिर से अपनी नज़र रखेगा! पे नज़र! करोरों डकार कर भी तुम सीना तान कर अब नहीं चल पाओगे. तुम्हे अब वही जाना होगा जहाँ तुम्हारी वास्तविक जगह है.
इस पूरी गहमा गहमी में हमे ये समझना होगा की आख़िर कोई भ्रष्ट हो ही क्यों जाता है? भ्रष्ट होकर कोई घूंस लेता ही क्यों है? बीबी को संत्ुस्त करने के लिए, अपने बच्चों की खुशियाँ खरीदने के लिए, अपने लिए आराम और एकराम जुटाने के लिए. आख़िर क्यों? क्यों ना आज से भारत की हर मा-बेटी-बहू-बीबी-बहन-बेटा-बाप-भाई या हर एक रिश्तेदार जिसके लिए एक भ्रष्टाचारी भ्रष्ट आचरण करता है, कह दे की काले धन से की गई कमाई से खरीद कुछ भी हमे नहीं चाहिए! मिहनत से दो पैसे कमाओ, एक पैसे से कहरदा गया फूल भी हमारे लिए नौलखा हार है, एक बहन के लिए सबसे बड़ा तोहफा, तो एक बाप के लिए सबसे बड़े फख्र की बात की उसका बेटा ईमानदार है, पति ईमानदार है, भाई ईमानदार है, पड़ोसी ईमानदार. यही तो ज़रूरत है आज की.
वास्तविक लोकतंत्र के इस शंखनाड्के लिए अन्ना और उनकी टीम के लए हमे आभारी होना छाईए. हमने गाँधी को नहीं देखा,. जयप्रकाश नारायण को भी नहीं देखा. विनोवा के आंदोलन से भी हम दो-चार नहीं हुए. जो भी जाना-समझा किताबों मे पढ़कर जाना या गुरुओं की वाणी से जाना. अन्ना ने हमे उस सत्य-अहिंसा-सविनय अवघया का अर्थ समझा दिया जिसके ज़रिए गाँधी ने उस अँग्रेज़ी राज से हमे आज़ादी दिलाई जिसके राज मे सूरज कभी अस्त नहीं होता था. विनोवा ने लाखों भूमिहीनो को ज़मीन के तुकर्े दिलाए जिसे वो अपना कह सके, दो जून की रोटी उगा सके. जयप्रकाश नारायण ने उस एमर्जेन्सी का ख़ात्मा कििया जो दुनिया के इस सबसे बारे लोकतंत्र ऑर ही ग्रहण लगाए बैयटा था. लेकिन आज अन्ना के इस जन लोकपाल बिल आंदोलन ने एक बार फिर इस देश को आशाओं से भर दिया है. इस देश का युवा, प्रोढ, बुजुर्ग मरा नहीं हैं.
उदारीकरण-भूमंडलीकरण की शुरआत के बाद इस देश का युवा बस पेप्सी-कोक-पिज़्ज़ा-बर्गर मे लिप्त पेश किया जा रह था या वो ऐसा नज़र आ रहा था. उसकी उर्जा कहीं से भी एमबीए कर के किसी एमएनसी मे बढ़ियाँ पॅकेज पा लेने में चूकती नज़र आ रही थी. उस युवा वर्ग ने बताया है की नहीं! उसकी चिंता भी वही है जो अन्ना की है. अन्ना के लिए भी उनका समर्थन हाँसिल कर लेना, उन्हे अपने साथ खड़े कर लेना अन्ना की सबसे बड़ी जीत है.

भ्रास्तचार को लेकर आख़िर कौन त्रस्त नहीं है आज देश में? क्या छात्र, क्या टीचर, क्या साहब, क्या बाबू. देश का हर आदमी अपनी-अपनी जगह पर भ्रष्टाचार से जूझ रहा है. सब जानते है लेकिन कोई आवाज़ बुलंद नहीं हो रही. जो सरकार आज अन्ना के आंद्लन के आयेज झुकती नज़र आ रही है, जो विपक्ष इस आंदोलन के कारण बगले झकता नज़र आ रहा है वो कर क्या रहा था आज तक. नूरा कुश्ती! यही ना! सरकार मनमानी करती जाती है विपक्ष संसद चलने नहीं देता. सरकार का काम और आसान हो जाता है. सरकार ध्वनिमत से बिल और अनुदान माँगे पास करवा लेती है. काम चलता रहता है. और बाकी सब ठीक है-की मनोदशा देश ओपर तोप दी जाती है. विपक्ष ने अपनी साख इस कदर गवा दी है की उसका एक भी आंदोलन सिरे नहीन चढ़ता. इसके लिए ज़िम्मेदार कौन है? अगर सरकार ४८ साल मे भ्रष्टाचार से लड़ने के एक सक्षम तंत्र विकसित नहीं कर पाई तो विपक्ष ने कौन सा तीर मार लिया? इस बीच सत्ता कई बार पक्ष-विपक्ष के हाथ आया भी लेकिन हुआ क्या? जनता के लिए-जनता द्वारा चुनी जनता की सरकार जनप्रतिनिधियों के लिए जनप्रतिनिधियों द्वारा बन बैठी. कोई जवाबदेही नहीं. तुम मेरी खुजाओ मैं तुम्हारी खुजाता हूँ-यही मूल मंत्र हो गया है-पक्ष-विपक्ष दोनो के लिए. काले धन को लेकर व्यथित होने का नाटक पूरा सत्ता तंत्र कर रहा है और हो कुछ भी नहीं रहा. आशा मारती जा रही थी. विपक्ष की किसी बात का जनता को यकीन ही नहीं रह गया है आज. यकीन हो भी तो कैसे? बंगारु से लेकर येदीयुरप्पा तक का तो उदाहरण सामने है. जीवन भर अपनी परिवारिक ज़िम्मेदारियों से पलायन करने वाला एक बाबा भी योग सिखाते सिखाते जनता को भ्रष्टाचार और काले धन सेमुक्ति का मार्ग बताने लगता है. राष्ट्र निर्माण की बात करने लगता है. ये बातें भी एक नया व्यापार लगने लगती हैं. जनता यकीन करे भी तो क्यों?
लेकिन अन्ना आपने हमे हमारा यकीन वापस लौटाया है आपको कोटि-कोटि धन्यवाद. जान लोकपाल बिल का ये बहाना भारत के इतिहास मे एक नये युग का सूत्रपात कर रहा है और हम इसके गवाह बन रहे है, हमारी भी इसमे कुछ भागीदारी हो रही है, हम शुक्रगुज़ार है. आशा है देश और ना ही देश का हर नागरिक अब जागता रहेगा. आमीन!